किसी भी मुकदमे या केस को फाइल करने के लिए सबसे पहला स्टेप सीआरपीसी एक्ट के सेक्शन 154 के तहत फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट या एफआईआर करना होता है। इसके बाद एक्ट के तहत आपके केस की आपराधिक कार्यवाही (criminal Proceedings) शुरू कर दी जाती है। फर्स्ट इनफार्मेशन रिपोर्ट या एफआईआर वह डॉक्युमेंट होता है जिसमे कॉग्निजेबल ओफ्फेंसिस या संज्ञेय अपराधों के बारे में सभी जानकारी होती है।
वैलिड एफआईआर
किसी भी पुलिस स्टेशन में की जाने वाली एफआईआर तब ही एक वैलिड एफआईआर मानी जाती है जब शिकायत करने वाले व्यक्ति की पहचान के रूप में उसका नाम और उसके साइन उस शिकायत के साथ अटैच किये जाते है। जिस एफआईआर के साथ शिकायत करने वाले व्यक्ति की पहचान शामिल नहीं होती उस कम्प्लेन को एक वैलिड एफआईआर नहीं माना जाता है।
भारत के कानून द्वारा एफआईआर के रूप में आम नागरिकों को अपनी शिकायतें सरकार तक पहुंचाने का अधिकार दिया गया है। कोई भी पुलिस ऑफ़िसर वेरिफिकेशन किये बिना एक एफआईआर को फाइल करने के लिए बाध्य होता है। हालाँकि, काफी लोग इस बात का गलत फायदा भी उठाते हैं और झूठी शिकायतें लेकर पुलिस स्टेशन पहुंच जाते है और पुलिस को मजबूरन उनकी शिकायतें फाइल करनी पड़ती है। आमतौर पर देखा जाये तो ऐसी झूठी शिकायतें करने का साफ़ मकसद अपने किसी दुश्मन को बदनाम करना, परेशान करना या उससे किसी तरह का मुनाफ़ा हासिल करना होता है। हांलांकि इस तरह की शिकायतों से निपटने के लिए भारतीय संविधान में प्रोविजन्स हैं जो इस तरह की झूठी एफआईआर से डील करने में मदद करते हैं।
झूठी एफआईआर
अगर एक व्यक्ति के खिलाफ किसी अन्य व्यक्ति द्वारा झूठी एफआईआर फाइल की गयी है तो विक्टिम एक एप्लीकेशन के माध्यम से अपनी बात कोर्ट तक पहुंचा सकता है। इस काम के लिए बेशक उन्हें एक लॉयर की जरूरत पड़ेगी। वह लॉयर की सलाह और उनकी मदद से भारतीय संविधान के सेक्शन 226 या सेक्शन 32 के तहत निषेध रिट (prohibition writ) या परमादेश की रिट (writ of mandamus) फाइल करके हाई कोर्ट तक जा सकते है।
एंटीसिपेटरी बेल
एंटीसिपेटरी बेल का मतलब होता है जेल होने से पहले ही जमानत ले लेना। इस जमानत को गैर-जमानती अपराधों मतलब जिन अपराधों के होने पर जमानत नहीं मिलती है, उन अपराधों के लिए सेशन कोर्ट या हाई कोर्ट में पहले ही फाइल किया जाता है। इस जमानत या बेल का उद्देश्य यह होता है कि एक निर्दोष व्यक्ति को दुश्मनी के चलते अपमानित या परेशान ना होना पड़े या किसी गलत केस में ना फंसाया जाये। जब भी किसी व्यक्ति को ऐसा लगे की किसी लड़ाई या झड़प के चलते उस पर झूठा केस किया जा सकता है तो वह व्यक्ति इस तरह की सिचुएशन बनने से पहले ही एंटीसिपेटरी बेल ले सकता है। हालाँकि, एक एंटीसिपेटरी बेल पास करने के समय कोर्ट बहुत सारी अलग-अलग बातों का ध्यान रखती है और विक्टिम पर भी काफी शर्तें लागू होती है।
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मानहानी का केस
अगर किसी ने दुश्मनी निभाने या बदला लेने की भावना से आपके ऊपर एक झूठा केस लगाया है तो विक्टिम शिकायत करने वाले व्यक्ति के खिलाफ क़ानून के तहत सेक्शन 499 के साथ सेक्शन 500′ के तहत मानहानि करने का मुकदमा कर सकता है। क़ानून में इन सेक्शंस के तहत अपराधी को सज़ा के तौर पर 2 साल की सज़ा या जुरमाना या दोनों भुगतना पड़ सकता है।
साथ ही, भारतीय कानून के तहत इण्डियन पीनल कोड के सेक्शन 220 में साफ़-साफ़ उल्लेख किया गया है कि किसी को झूठे मामले में फंसाने और कानून को गुमराह करने के लिए एक व्यक्ति को 7 साल तक की जेल या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
मुआवज़ा
बहुत सारे केसों में बदला लेने के लिए या सिर्फ सामने वाले व्यक्ति को परेशान करने के लिए एक झूठा केस फाइल कर दिया जाता हैं। ऐसे सभी केसों के अंदर पीड़ित व्यक्ति सिविल प्रोसीजर कोड, 1908 के सेक्शन 19 के तहत शिकायत करने वाले व्यक्ति के खिलाफ झूठे केस में फंसाने और परेशान करने के लिए मुआवजे/कंपनसेशन की कार्यवाही कर सकता है।
झूठी एफआईआर किसी व्यक्ति को केस में फंसाने के लिए कानून का दुरुपयोग करना है। यह व्यक्ति को मानसिक, आर्थिक और भावनात्मक रूप से प्रभावित करता है। एफआईआर के साथ एक कलंक जुड़ा हुआ है। झूठी एफआईआर के केसिस पर सख्त कार्रवाई करके रोक लगाई जानी चाहिए।
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